Thursday, April 25, 2019

नेटवर्क बनाने से डरते हैं तो ये हैं तरीके

दोस्त और परिवार के लोग चाहे जितने अच्छे हों, यह ज़रूरी नहीं कि जिन्हें आप पहले से जानते हैं वे कोई अच्छी नौकरी या कोई बड़ा काम दिलाने में आपकी मदद करें.

इसलिए हमें अपने परिचित दायरे से बाहर के लोगों से संपर्क बनाना पड़ता है.

बहुत सारे व्यक्तियों के संपर्क में रहने वाले कुछ बहिर्मुखी लोगों को भी इस तरह पेशेवर संपर्क बनाना अच्छा नहीं लगता.

जिस तरह की नेटवर्किंग के बारे में हम बात कर रहे हैं वह अंतर्मुखी या एकाकी लोगों के लिए ख़ास तौर पर चुनौतियों से भरा हो सकता है.

ज़रुरी बैठकों, भोजन या कॉफी पर किसी से मुलाकात करने में उनको भारी परेशानी हो सकती है.

नेटवर्किंग का एक दूसरा रूप भी है जिसे आप अपने तरीके से और अपनी रफ़्तार से कर सकते हैं. मैं इसे "लूज़ टच" कहती हूं.

यह संपर्क बनाने और उसे बचाए रखने को लेकर आपकी सोच को पूरी तरह बदल सकता है.

आप जितने लोगों के बारे में सोचते हैं असल में उससे कहीं ज़्यादा लोगों को जानते हैं, क्योंकि कई लोगों से आपके "ढीले रिश्ते" होते हैं.

ये वैसे संपर्क होते हैं जिनके बारे में आप बस थोड़ा जानते हैं और शायद उनके बारे में कभी सोचते नहीं.

हो सकता है कि आप आते-जाते कहीं उनसे मिलते हों या कुछ दिनों के लिए साथ में काम किया है.

यह भी हो सकता है कि आपने किसी क्लास या कांफ्रेंस में एक साथ हिस्सा लिया हो.

वे आपके दोस्तों के दोस्त भी हो सकते हैं, पूर्व सहयोगी या स्कूल के साथी भी हो सकते हैं.

आम तौर पर आप उनके संपर्क में नहीं होते. लेकिन आपके नेटवर्क पर उनका बड़ा असर हो सकता है.

70 के दशक में हुए एक समाजशास्त्रीय अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों के साथ आपके प्रत्यक्ष या मज़बूत संबंध नहीं होते उनके अलग सामाजिक दायरों में रहने और अलग तरह की सूचनाओं तक उनकी पहुंच होने की संभावना ज़्यादा रहती है.

इसलिए अगर हम नये विचारों, सुरागों या परिचय की तलाश कर रहे हों तो अपने सामान्य दायरे से बाहर निकलने पर क़ामयाबी की संभावना बढ़ जाती है.

मैं एक उदाहरण देती हूं. वर्षों पहले मैं एक क्रिएटिव एजेंसी की छोटी टीम का हिस्सा थी. पिछले साल मैं उन दिनों की एक डिजाइनर से मिली.

हम एक-दूसरे के बहुत करीब नहीं थे, लेकिन पुरानी पहचान पर भरोसा करके उसने मुझे बताया कि वह नई नौकरी की तलाश में है.

उसे नेटवर्क बनाना पसंद नहीं था और वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि वह किससे मदद मांगे.

मैंने उसे याद दिलाया कि उसे नये सिरे से शुरुआत नहीं करनी है. मैंने उसे हमारे पुराने समूह के कुछ नाम बताए, जिससे उसका चेहरा खिल उठा.

ये वे लोग थे जिन्हें वह पसंद करती थी. उन सबको संपर्क में रहने का नोट भेजने में उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

कुछ महीनों बाद मैं उससे दोबारा मिली तो वह कुछ पुराने (और अब मौजूदा) सहयोगियों के साथ नये प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी.

मुझे उम्मीद है कि अब उसने अपने पूर्व सहयोगियों के साथ लूज़ टच में रहने की आदत बना ली होगी.

अगली बार यदि उसे कोई ज़रूरत होगी तो वह उन लोगों से संपर्क करने में नहीं हिचकेगी, जो मदद करने के लिए तैयार हैं.

बिज़नेस प्रोफेसर डेविड बर्कस ने अपनी नई किताब "फ्रेंड ऑफ़ ए फ्रेंड" में इस बात पर ज़ोर दिया है कि जिन लोगों को आप पहले से जानते हैं वे आपकी मदद करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं.

शर्मीले लोगों को शायद यह बात अच्छी लगे, लेकिन यह नेटवर्क बढ़ाने की उनकी कोशिशों को रोक सकता है.

बर्कस कहते हैं, "जब हमारे करियर को झटका लगता है तब हम करीबी मित्रों को ही इसके बारे में बताते हैं. वे हमारी मदद करने में सक्षम हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं."

"इसकी जगह हमें उन लोगों से संपर्क करना चाहिए जिनसे हमारे नजदीकी रिश्ते न हो. उनको अपने बारे में बताएं और देखें कि उनके पास क्या मौके हैं."

इससे भी बेहतर यह है कि हम ऐसे निष्क्रिय संबंधों को फिर से सक्रिय करने का नियमित अभ्यास शुरू करें.

दूसरे शब्दों में, आपको सामाजिक तितली होने की ज़रूरत नहीं है जो लंबी-लंबी बैठकें करे और संपर्क बढ़ाए. आपको बस अपने संबंधों को बचाए रखना है.

"लूज़ टच" में रहने का यही मतलब है. इसी तरीके से मैं वर्षों पहले मिले लोगों ढेरों लोगों से जुड़ी हुई हूं.

यदि हम ट्विटर, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम पर पहले से जुड़े हों तो मैं उन्हें प्राइवेट मैसेज़ भी भेज सकती हूं.

उसमें कोई न्यूज़ स्टोरी भी हो सकती है जिसमें उनकी रुचि हो सकती है. मैं कोई वीडियो, कार्टून या छोटा अभिवादन भी भेज सकती हूं (जैसे- क्या चल रहा है? क्या नया-ताज़ा है?).

Thursday, April 11, 2019

श्याओमी के फाउंडर बोनस में मिले 6631 करोड़ रुपए के शेयर दान करेंगे

बीजिंग. स्मार्टफोन कंपनी  श्याओमी के फाउंडर और सीईओ ले जुन (49) को 96.1 करोड़ डॉलर (6,631 करोड़ रुपए) की वैल्यू के 63.66 करोड़ शेयर बोनस में मिले हैं। कंपनी में जुन के योगदान के लिए उन्हें यह बोनस दिया गया है। जुन सारे शेयरों को दान करेंगे। कंपनी ने बुधवार को रेग्युलेटरी फाइलिंग में यह जानकारी दी। हालांकि, यह नहीं बताया कि दान किसे दिया जाएगा।

पिछले साल हॉन्गकॉन्ग में लिस्ट हुआ था श्याओमी का शेयर
चीन में पिछले साल स्मार्टफोन की बिक्री घटने की वजह से श्याओमी के शेयर की कीमत में कमी आई है। उसे सैमसंग, एपल, हुवावे, ओप्पो और वीवो से कॉम्पिटीशन का सामना भी करना पड़ रहा है। 10 साल पुरानी कंपनी श्याओमी का शेयर पिछले साल जुलाई में हॉन्गकॉन्ग के शेयर बाजार में लिस्ट हुआ था।

श्याओमी के शेयर में गिरावट के बावजूद जुन की मौजूदा नेटवर्थ 11 अरब डॉलर (75,900 करोड़ रुपए) है। ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स के मुताबिक दुनिया के 500 अरबपतियों की लिस्ट में उनका 126वां नंबर है।

रिसर्च फर्म आईडीसी के मुताबिक 2018 में श्याओमी दुनिया की चौथी बड़ी स्मार्टफोन कंपनी थी। पिछले साल कंपनी की हैंडसेट डिलीवरी ग्रोथ 32.2% रही।

मार्च 2018 से असांजे का इंटरनेट कनेक्शन भी काट दिया गया था। इसका कारण असांजे के द्वारा किया गया वादा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह बाकी देशों से रिश्तों को लेकर कोई मैसेज नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। असांजे ने विकीलीक्स की वेबसाइट पर इराक युद्ध से जुड़े चार लाख दस्तावेज सार्वजनिक किए थे। इसके जरिए उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड और नाटों की सेनाओं पर युद्ध अपराध का आरोप लगाया था। असांजे पर यह भी आरोप है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान रूसी खुफिया एजेंसियाें ने हिलेरी क्लिंटन के कैम्पेन से जुड़े ईमेल हैक कर उन्हें विकीलीक्स को दे दिया था।

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के सात चरण में से पहले चरण के लिए आज वोट डाले जा रहे हैं। दोपहर 3 बजे तक उत्तरप्रदेश की आठ सीटों पर 51%, बंगाल में 70% और बिहार में 42% मतदान हुआ। वहीं, महाराष्ट्र में 46.13% और बिहार में 42% वोट डाले गए। पहले चरण में 18 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों की 91 सीटें शामिल हैं। कुल 1279 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनका फैसला 14 करोड़ 20 लाख 54 हजार 978 मतदाता करेंगे। इनमें 7 करोड़ 21 लाख पुरुष मतदाता, 6 करोड़ 98 लाख महिला मतदाता हैं। इनके लिए 1.70 लाख मतदान केंद्र बनाए गए हैं।

पहले चरण में 10 राज्यों की सभी सीटों पर आज मतदान पूरा हो जाएगा। वहीं, आंध्रप्रदेश विधानसभा की सभी 175, अरुणाचल प्रदेश की सभी 60, सिक्किम की सभी 32 और ओडिशा की 147 में से 28 विधानसभा सीटों के लिए भी वोटिंग जारी है।

पहले चरण में 91 में से 33 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां सीधा मुकाबला भाजपा-कांग्रेस या एनडीए-यूपीए के बीच है। इनमें सबसे ज्यादा 7 सीटें महाराष्ट्र की हैं। पांच-पांच सीटें असम और उत्तराखंड और चार सीटें बिहार की हैं। वहीं, 35 ऐसी सीटों पर भी वोट डाले जाएंगे तीन से चार मुख्य दलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। इनमें सबसे ज्यादा 25 सीटें आंध्र की हैं। वहां तेदेपा, वाईएसआरसीपी, भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। आंध्र में 3 करोड़ 93 लाख वोटर हैं। वहीं, 8 सीटें उत्तर प्रदेश की हैं, जहां भाजपा, कांग्रेस के अलावा सपा-बसपा-रालोद ने अपना संयुक्त उम्मीदवार उतारा है।

2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन 91 में से 7 और कांग्रेस ने 55 सीटें जीती थीं। 2014 में यह तस्वीर बदल गई। कांग्रेस 7 सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा को 25 सीटों का फायदा हुआ और वह 32 के आंकड़े तक पहुंच गई। पहले चरण की इन 91 सीटों पर पिछली बार कांग्रेस से ज्यादा सफल तेदेपा (16) और टीआरएस (11) रही थी।

यहां केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और कांग्रेस के नाना पटोले के बीच मुकाबला है। पटोले 2017 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ गए थे। नागपुर में दलित और मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका है। कुनबी और बंजारा समुदाय के वोटर भी हैं जो निर्णायक साबित हो सकते हैं। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी इसी शहर से हैं।

Wednesday, April 3, 2019

कौओं को खदेड़ती है बाजों-उल्लुओं की टीम, ताकि वे राष्ट्रपति भवन को नुकसान न पहुंचाएं

मास्को. रूस में राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन और उसके आसपास की प्रमुख इमारतों की कौओं से हिफाजत करने के लिए रक्षा विभाग ने बाजों और उल्लुओं की टीम बनाई है। परिंदों की यह यूनिट 1984 में बनाई गई थी। अभी इसमें 10 से ज्यादा बाज और उल्लू हैं। उन्हें इसके लिए खास तरह की ट्रेनिंग दी गई है।

कौओं को देखते ही झपट पड़ते हैं

इस टीम में 20 साल की एक मादा बाज अल्फा और उसका साथी फाइल्या उल्लू है। ये कौओं की आवाज सुन लें या उन्हें आसमान में मंडराते देख लें तो चंद मिनटों में उन पर झपट पड़ते हैं। इन परिंदों के दल की देखरेख करने वाली टीम में शामिल 28 साल के एलेक्स वालासोव कहते हैं, ‘‘इसके पीछे मकसद सिर्फ कौओं से छुटकारा पाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें इमारतों से दूर रखना है ताकि वे यहां अपना घोंसला न बना सकें।’’

कौओं के मल-मूत्र से गुंबदों का क्षरण हो रहा था

वालासोव का कहना है, ‘‘कौए कई तरह की घातक बीमारियां फैलाते हैं। इनके बैठने और मल-मूत्र से क्रेमलिन के सुनहरे गुंबदों को भी नुकसान पहुंचने का खतरा था। ये यहां फूलों क्यारियों को भी नुकसान पहुंचाते थे। ऐसे में क्रेमलिन के सुरक्षाकर्मियों के लिए इनकी गंदगी साफ करने से ज्यादा आसान इन्हें खदेड़ना था।’’

सब तरकीबें नाकाम हुईं तब यहां शिकारी पक्षी बसाए गए

इमारतों की देखरेख करने वाली टीम के सुपरिटेंडेंट रहे पावेल माल्कोव का कहना है- सोवियत संघ के शुुरुआती दौर में क्रेमलिन और उसकी आसपास की इमारतों की रक्षा के लिए कौओं को मार गिराने वाले गार्ड रखे गए। कौओं को डराने के लिए शिकारी पक्षियों की रिकॉर्ड की गई आवाज का भी इस्तेमाल किया गया, लेकिन ये तरकीबें कारगर साबित नहीं हुईं। माल्कोव बताते हैं कि इसके बाद यहां शिकारी पक्षियों को ही बसाने का फैसला किया। अब रक्षा विभाग की टीम में शामिल इन पक्षियों का दल यहां स्थायी रूप से रहता है।

बाज और उल्लू ही क्यों?

वालासोव का कहना है कि हर पक्षी के शिकार करने का अलग तरीका होता है। गोशाक्स (बाज की एक प्रजाति) बेहद तेज उड़ता है। कम दूरियों के लिए यह बहुत तेज है। उससे सामने आए कौए के बचने के बहुत कम मौके रहते हैं। वहीं, फाइल्या उल्लू के प्रशिक्षक डेनिस सिडोगिन बताते हैं कि वह रात में शिकार के लिए मुफीद है। यह बिल्कुल शांत रहकर शिकार करता है। कौओं से मुकाबले के लिए वह अकेला ही काफी है। वह अपनी बड़ी-बड़ी आंखों के साथ अपनी गर्दन को 180 डिग्री तक घुमा सकता है और अपनी जगह पर बैठे-बैठे ही पीछे देख सकता है।

क्रेमलिन के गार्ड्स का कहना है कि दुनियाभर में सशस्त्रबलों में पक्षियों की यूनिट का इस्तेमाल करती हैं। इन्हें कीट-पतंगों को डराने के लिए यहां तक की ड्रोन को मार गिराने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, क्रेमलिन की सुरक्षा में तैनात पक्षियों का इस्तेमाल ड्रोन गिराने में नहीं किया जाता, क्योंकि इसके लिए अब कई तरह की आधुनिक तकनीक मौजूद हैं।

台湾小学男生担心粉红口罩引发的性别教育讨论

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